Thursday, February 24, 2011

गुरु दें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


भरतनाट्यम नृत्यांगना अनुराधा वेंकटरमण ने कहा गुरु-शिष्य परंपरा के अनसैड रूल्स के डर से घिरे रहते हैं शिष्य

समाज के बदलते परिदृश्य में अब समय आ गया है जब गुरुओं को अपने शिष्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देनी चाहिए। गुरु-शिष्य परंपरा का हम बरसों से सम्मान करते आए हैं, लेकिन इस परंपरा के अनसैड रूल्स कलाकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से रोकते हैं। एक सीमा तक एक्सपर्ट होने के बाद भी कलाकार के सिर पर हमेशा एक छिपा हुआ डर मंडराता रहता है जिसके चलते वह गलती के डर से कला की उन्मुक्त और स्वतंत्र अभिव्यक्ति नहीं कर पाता है। जहां तक मेरा प्रश्न है मैं अपने शिष्यों को अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता तो देती हूं पर उनके काम पर नजर भी रखती। जहां कहीं लगता है उन्हें सही मार्गदर्शन देती हूं। आज की युवा पीढ़ी पढ़ी-लिखी और समझदार है वो हर काम देखकर और परखकर करने में विश्वास रखती है।

पैसे के लिए किए काम में सोल नहीं : कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए पैसा लेना बुरी बात नहीं है, लेकिन पैसे के बदले में काम करना गलत होता है। इस तरह के काम में सोल नहीं होती है और कला गाइडेड हो जाती है। कला तो मन में उठने वाली अनुभूतियों से बनती-बिगड़ती है।

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