जवाहर कला केंद्र में बुधवार को भारतीय शास्त्रीय संगीत और राजस्थानी लोक संगीत पर आधारित कार्यक्रम ‘कहरवा की तरंग’ प्रस्तुत करने वाले जाने-माने तबला वादक डॉ. विजय सिद्ध ने सोमवार को पं. छन्नू लाल मिश्र के बयान को सिरे से नकारते हुए कहा कि आज के दौर में फ्यूजन के मायने व्यापक हो गए हैं। पाश्चात्य संगीत के साथ भारतीय संगीत को प्रस्तुत करना ही फ्यूजन नहीं है। शास्त्रीय संगीत में तो बरसों से फ्यूजन होता आया है। दो घरानों की शैलियों को मिलाकर गाना अथवा दो रागों के मिश्रण से कई नए राग की कल्पना करना भी फ्यूजन की श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा कि संगीत शैली की शुद्धता को बरकरार रखते हुए किया गया कोई भी रचनात्मक कार्य गलत नहीं होता है। यदि ऐसा होता तो भारतीय शास्त्रीय संगीत की शुद्धता के सबसे प्रबल पक्षधर पं. रविशंकर और उस्ताद जाकिर हुसैन जैसे कलाकार कभी फ्यूजन नहीं करते। |
Wednesday, February 23, 2011
...तो जाकिर हुसैन कभी फ्यूजन नहीं करते
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