नाटक ‘और अगले साल’ की कहानी का अंत बना चर्चा का विषय। रंगकर्मियों ने कहा नाटक को अति भावुकता से बचाना ही होगा। sarvesh bhatt जवाहर कला केंद्र के फ्राइडे थिएटर में शुक्रवार को मशहूर लेखक जावेद सिद्दकी लिखित और एनएसडी ट्रेंड सुरेश भारद्वाज निर्देशित नाटक ‘और अगले साल’ का मंचन किया गया। नाटक के बाद और शनिवार को दिन भर नाटक की कहानी के अंत को लेकर रंगकर्मियों में चर्चाओं के दौर चले। अधिकतर रंगकर्मियों ने इस प्रकार के फिल्मी शैली के अंत को नाटक के लिए अच्छा नहीं माना, वहीं कुछ ने यह भी कहा कि प्रयोग के बतौर कभी-कभी ऐसा हो भी जाए तो क्या हर्ज है। कथानक को लेकर भले ही कितनी ही बातें हुई हों, लेकिन इस नाटक के कलाकारों के बेहतरीन अभिनय और निर्देशकीय कौशल की सभी ने तारीफ की। सिटी भास्कर ने रंगकर्मियों की इन प्रतिक्रियाओं को एक सार्थक बहस के रूप में स्वीकार किया। यहां प्रस्तुत हैं नाटक को लेकर की गई कुछ बातें रंगकर्मियों की जुबानी। यह थिएटर के लिए ठीक नहीं : वरिष्ठ रंगकर्मी अशोक राही का कहना है कि सिनेमा और थिएटर में अंतर है। जब थिएटर में फार्मूला स्क्रिप्ट लिखी जाती है, तब उनका प्रभाव समाप्त हो जाता है चाहे वह जावेद सिद्दकी सरीखे लेखक ही क्यों न हों। एनएसडी जैसे संस्थान से निकले रंगकर्मी ही अगर हल्के कथानक परोसेंगे तो इससे नाटक का चेहरा तो बदल ही जाएगा। यह कौनसा दर्पण है? : नाट्य निर्देशक और अभिनेता विजय मिश्रा दानिश कहते हैं कि नाटक समाज का आईना होता है, यह बात सार्वभौम सत्य है। उसके बाद भी बड़े हस्ताक्षर प्रयोग के नाम पर जो जी में आता है परोस देते हैं और दर्शक बेचारा मूक दर्शक बना रहता है। और अगले बरस निस्संदेह प्रस्तुतीकरण और मंचीय कौशल के स्तर पर एक बेहतरीन प्रस्तुति थी। हर्ज ही क्या है : युवा रंगकर्मी अमित शर्मा ओटीएस कभी-कभी इस प्रकार के मंचीय प्रयोग को बुरा नहीं मानते हैं। उनका कहना है, ये सही है कि नाटक का कथानक चाहे फंतासी में पिरोया गया हो या समाज का यथार्थ दर्शाए, वो नाट्य परिधि में सिमटा हो तो ही अच्छा लगता है। कुछ नाटक नाट्य सीमा रेखा तोड़ भी दें तो क्या हर्ज है! प्रस्तुतीकरण ने दबा दी कमी : जयपुर थिएटर की सुपरिचित अभिनेत्री किरण राठौड़ का कहना कि हालांकि नाटक का अंत फिल्मों की तरह कुछ अति नाटकीयता दर्शाता है, लेकिन इसके कलाकारों का बेहतरीन अभिनय और निर्देशकीय कौशल ने इस कमी को महसूस नहीं होने दिया। इप्टा की जयपुर इकाई के अध्यक्ष संजय विद्रोही ने कहा कि थिएटर को अति नाटकीयता से बचाना रंगकर्मियों की जिम्मेदारी है और नाटक जब एनएसडी ट्रेंड कर रहे हों तो यह और भी बढ़ जाती है।
|
Saturday, April 16, 2011
नाटक बनें प्रासंगिक
Subscribe to:
Posts (Atom)