Thursday, February 24, 2011

कल्चरल पॉलिसी ही बचाएगी संस्कृति को

प्रयाग शुक्ल के बयान पर बोले ललित कला अकादमी के एक्स चेयरमैन डॉ. सी.एस. मेहता

सिटी रिपोर्टर. कल्चरल पॉलिसी पर बुधवार को प्रकाशित प्रख्यात लेखक प्रयाग शुक्ल के बयान को सिरे से नकारते हुए राजस्थान ललित कला अकादमी के पूर्व चेयरमैन और कलाविद डॉ. सी.एल. मेहता ने कहा है कि पॉलिसी ही इस देश की संस्कृति को बाहरी हमलों से बचा सकती है। उन्होंने इस संबंध में भरत नाट्यम नृत्यांगना गीता चंद्रन के विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि हमारे देश के बुद्धिजीवी बड़े ही विचित्र विरोधाभास के बीच फंसे हुए हैं। एक ओर उन्हें सरकार से यह शिकायत रहती है कि वह संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर विशेष ध्यान नहीं देती है और दूसरी ओर जब सरकार विशेषज्ञों के राय लेकर सांस्कृतिक नीति बनाने की बात करती है तो हम यह कहने लगते हैं कि इससे सरकारी दखल बढ़ेगा, इसलिए यह काम समाज पर छोड़ देना चाहिए। हमारा समाज कई वर्गों में बंटा हुआ है इसलिए ऐसे मुद्दों पर कभी एक राय कायम ही नहीं हो सकती। सरकार ऐसा समूह है जो समाज की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है और उसके द्वारा किए गए कार्य समाज का निर्णय ही माना जाता है। मैंने कई साल पहले सरकारी स्तर पर इस बहस को आगे बढ़ाया था तथा सांस्कृतिक नीति का मसविदा भी लोगों की राय से तैयार किया था।

आगे आए सरकार

उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि अब समय आ गया है कि कल्चरल पॉलिसी जैसे गंभीर मुद्दे पर वह नए सिरे से विचार करे ताकि आने वाले समय में अन्य देशों की भांति हमारी संस्कृति भी गौरव से सिर उठाकर खड़ी हो सके।

गुरु दें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


भरतनाट्यम नृत्यांगना अनुराधा वेंकटरमण ने कहा गुरु-शिष्य परंपरा के अनसैड रूल्स के डर से घिरे रहते हैं शिष्य

समाज के बदलते परिदृश्य में अब समय आ गया है जब गुरुओं को अपने शिष्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देनी चाहिए। गुरु-शिष्य परंपरा का हम बरसों से सम्मान करते आए हैं, लेकिन इस परंपरा के अनसैड रूल्स कलाकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से रोकते हैं। एक सीमा तक एक्सपर्ट होने के बाद भी कलाकार के सिर पर हमेशा एक छिपा हुआ डर मंडराता रहता है जिसके चलते वह गलती के डर से कला की उन्मुक्त और स्वतंत्र अभिव्यक्ति नहीं कर पाता है। जहां तक मेरा प्रश्न है मैं अपने शिष्यों को अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता तो देती हूं पर उनके काम पर नजर भी रखती। जहां कहीं लगता है उन्हें सही मार्गदर्शन देती हूं। आज की युवा पीढ़ी पढ़ी-लिखी और समझदार है वो हर काम देखकर और परखकर करने में विश्वास रखती है।

पैसे के लिए किए काम में सोल नहीं : कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए पैसा लेना बुरी बात नहीं है, लेकिन पैसे के बदले में काम करना गलत होता है। इस तरह के काम में सोल नहीं होती है और कला गाइडेड हो जाती है। कला तो मन में उठने वाली अनुभूतियों से बनती-बिगड़ती है।

Wednesday, February 23, 2011

...तो जाकिर हुसैन कभी फ्यूजन नहीं करते



जवाहर कला केंद्र में बुधवार को भारतीय शास्त्रीय संगीत और राजस्थानी लोक संगीत पर आधारित कार्यक्रम ‘कहरवा की तरंग’ प्रस्तुत करने वाले जाने-माने तबला वादक डॉ. विजय सिद्ध ने सोमवार को पं. छन्नू लाल मिश्र के बयान को सिरे से नकारते हुए कहा कि आज के दौर में फ्यूजन के मायने व्यापक हो गए हैं। पाश्चात्य संगीत के साथ भारतीय संगीत को प्रस्तुत करना ही फ्यूजन नहीं है। शास्त्रीय संगीत में तो बरसों से फ्यूजन होता आया है।

दो घरानों की शैलियों को मिलाकर गाना अथवा दो रागों के मिश्रण से कई नए राग की कल्पना करना भी फ्यूजन की श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा कि संगीत शैली की शुद्धता को बरकरार रखते हुए किया गया कोई भी रचनात्मक कार्य गलत नहीं होता है। यदि ऐसा होता तो भारतीय शास्त्रीय संगीत की शुद्धता के सबसे प्रबल पक्षधर पं. रविशंकर और उस्ताद जाकिर हुसैन जैसे कलाकार कभी फ्यूजन नहीं करते।

Tuesday, February 15, 2011

Art and Culture Special: सेलिब्रिटी कलाकार किसी की निजी बपोती नहीं

Art and Culture Special: सेलिब्रिटी कलाकार किसी की निजी बपोती नहीं: "पंडित जसराज अपने विनम्र और मधुर व्यव्हार के लिए भी पहचाने जाते हैं....उनके विचार कलाकारों ही नहीं आम लोगों के लिए भी प्रेरणादाई होते हैं......."

सेलिब्रिटी कलाकार किसी की निजी बपोती नहीं

पंडित जसराज अपने विनम्र और मधुर व्यव्हार के लिए भी पहचाने जाते हैं....उनके विचार कलाकारों ही नहीं आम लोगों के लिए भी प्रेरणादाई होते हैं......वो पिछले साल श्रुतिमंडल के बैनर पर गाने आये तो प्रेस मीडिया से खुलकर मिले....श्रुतिमंडल के प्रकाश सुराना ने भी उनको मिलवाने में कोई कसर नहीं रखी.....उस समय बात चीत में कलाकारों के लिए पेंशन और pf का विचार निकलकर आया.......लेकिन पिछली दो बार से पत। जसराज शहर के एक संभ्रांत की गिरफ्त में ऐसे कैद हुए की परिंदा भी उनके पास जाने की हिमाकत नहीं कर पाया.....संभ्रांत से हमने अनुनय की उनसे बात करवाने की पर संभ्रांत ऐसे बाके हुए की पंडित जी जयपुर आकर भी गुमनाम से हो गए.....कहने का मतलब है की लिब्रिटी कलाकार किसी की निजी बपोती नहीं होता है वो जनता की अमानत होते है उनकी बाते शेयर करने का उनके बारे में जान्ने का सभी को हक़ है..........यह बात काश जयपुर के वो संभ्रांत जान जाये तो जो बात निकले वो दूर तलक तक जा सके...........आमीन

Tuesday, February 8, 2011

Art and Culture Special: पूर्वजो ने जो दिया है उसे तो गालो

Art and Culture Special: पूर्वजो ने जो दिया है उसे तो गालो: "मंगलवार को चित्रकार गोपाल स्वामी खैतांची की पेंटिंग exhibition का उद्घाटन करने के बाद उस्ताद vasiffudeen डागर से थोड़ी देर गुफ्तगू करने का मौ..."

पूर्वजो ने जो दिया है उसे तो गालो

मंगलवार को चित्रकार गोपाल स्वामी खैतांची की पेंटिंग exhibition का उद्घाटन करने के बाद उस्ताद vasiffudeen डागर से थोड़ी देर गुफ्तगू करने का मौका मिला...........ध्रुवपद को ही अपना ओढना बिछोना बनानेवाले इस तपस्वी कलाकर से जब ध्रुवपद में परिवर्तनों को लेकर चर्चा हुई तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा पूर्वजो ने जो दिया है उसे तो गालो.....अभी तो हम वो ही पूरी तरह नहीं सहेज पाए हैं......कलाकार कल का आकर होते हैं इसलिए उनपर बड़ी जिम्मेदारी होती है....भारत लोकतान्त्रिक देश है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को है....परिवर्तन करो पर ऐसा मत करो की मुह की जगह नाक से गाने के प्रचलन हो जाये.....डागर की पीड़ा वाकई सोचने और मनन करने योग्य है....आमीन

Monday, February 7, 2011

Art and Culture Special: दीवारों से मिलकर बातें करना अच्छा लगा

Art and Culture Special: दीवारों से मिलकर बातें करना अच्छा लगा: "सोमवार को आर्ट प्रोमोटर संगीता जुनेजा की आर्ट चिल गेलेरी की होटल ली मरिडियन में स्थापित नई ब्रांच में जाना हुआ वहा कोलकाता के सुब्रत गगोपाध्..."

दीवारों से मिलकर बातें करना अच्छा लगा

सोमवार को आर्ट प्रोमोटर संगीता जुनेजा की आर्ट चिल गेलेरी की होटल ली मरिडियन में स्थापित नई ब्रांच में जाना हुआ वहा कोलकाता के सुब्रत गगोपाध्याय सहित देश के १२ नामी चित्रकारों की डिस्प्ले की गई पेंटिंग्स इतनी प्राणवान थी की उनको देखने के बाद मन बरबस ही कह उठा............ दीवारों से मिलकर बातें करना अच्छा लगा..........संगीता जयपुर के कला फलक पर एक रचनात्मक और उद्यमी महिला के रूप में पहचानी जाती हैं.......कला के उन्नयन के लिए उनका यह प्रयास ऐसे ही चलता रहे ताकि शहर का कला फलक चमकता रहे

दीवारों से मिलकर बातें करना अच्छा लगा

सोमवार को संगीता जुनेजा की होटल ली मरिडियन में स्थापित आर्ट चिल्ल गैलरी में जाना हुआ वहां दीवारों पर डिस्प्ले की गई कोलकाता के सुब्रत गंगोपाध्याय सहित देश के दर्जन से भी अधिक कलाकारों की पेंटिंग्स इतनी जीवंत थी की मन बरबस ही कह उठा.......दीवारों से मिलकर बातें करना अच्छा लगा .......संगीता एक रचनात्मक प्रकृति की उद्यमी महिला है कला के फलक

Saturday, February 5, 2011

संस्कृति से दूर कलाकार

अमित और दुर्गाप्रसादजी ने ब्लॉग को जिस प्रकार तहे दिल से बधाई दी है उसके लिए उनको साधुवाद....
शनिवार को जवाहर कला केंद्र में बनारस की एक कलाकार ने समीक्षा के लिए निमंत्रित किया....बड़े शौक से गया कलाकार को हेलो कहा पर कलाकार ने बिलकुल ही अहमियत नहीं दी......मैंने इस उपेक्षा को दरकिनार करते हुए समीक्षा की....काम अच्छा था अच्छा ही लिखा......कहने का मतलब है अगर हम किसीको बुलाए तो उसे अहमियत देना हमारा धर्म है और यही हमारी संस्कृति भी कहती है पर हमारे देश के कलाकार इस संस्कृति से दूर होते जा रहे है....वो मीडिया से नज़रे बचाकर तो बतिया लेते है पर सार्वजनिक रूप से ऐसा दिखाते है मानो उन्हें मीडिया से मतलब ही नहीं है........ आमीन

Friday, February 4, 2011

hi

कृपया अपने विचारों से अवगत कराये की इसे कैसे चलाया जाये